Saturday, August 13, 2011

क्या जैन युवक धर्म से दूर जा रहे हैं?

-महावीर सांगलीकर



कई बुजुर्ग लोग जैन युवकों पर हमेशा आरोप लगाते रहते है कि जैन युवक धर्म से दूर जा रहे है. उपरी तौर पर देखे तो यह बात सच लग सकती है, लेकिन वास्तव में यह सच नहीं है.

आज के अधिकांश जैन युवक नियमित रूप से मंदिर नहीं जाते, पूजा-अर्चा, कर्मकांड जैसी बातों से दूर रहते हैं, साधुओं के पीछे पीछे नहीं घुमते, उनकी जयजयकार नहीं करते इसका मतलब यह नहीं है की वे जैन धर्म से दूर जा रहे है. वास्तव में हमारे साधू ही जैन धर्म से दूर गए है. जैन धर्म का सही मतलब युवकों तक पहुंचाने में हमारे साधू नाकामयाब रहे है.

हमें याद रखना चाहिए कि आज के युवक पढ़े लिखे है, वे खुद विचार और चिंतन करते है, फिर अगर कोई उन्हें धर्म के नाम पर गलत बातें बताने लगता है तो वे उन्हें स्वीकार नहीं कर सकते.

आज के युवक तथाकथित धार्मिक क्रियाओं से समाजसेवा, समाज के प्रति दायित्व, सामजिक एकता जैसी बातों को जादा महत्त्व देने लगे हैं. इसके उलटे हमारे कई साधुओं के जीवन का उद्देश समाज के तुकडे करना यही है.

आज के जैन युवक जैन धर्म के बारें में जानना चाहते है, महावीर के बारें में जानना चाहते है, लेकिन यह साधू इस विषय पर बोलते ही नहीं, अपनी ही तून्ती बजाते रहते है. सबसे खेद जनक बात यह हैं कि जैन साधुओं और सेठ साहूकारों की मिलीभगत हो गयी है. हर जैन मुनि के पीछे एक धनी होता है और हर धनी के पीछे एक मुनि होता है. इसका फ़ायदा दोनों उठाते रहते हैं, लेकिन समाज का किसी भी तरह का कोई भी फ़ायदा नहीं होता.

आज के जैन युवक जैन धर्म की सही जानकारी पुस्तकों और इंटरनेट से पा सकते है, इसलिए धर्म ज्ञान के लिए उन्हें किसी साधू के पास जाना जरूरी नहीं होता. वैसे भी वहां जाकर सही ज्ञान तो मिलनेवाला नहीं होता. अनेक जैन साधू तो जैन धर्म के नाम पर अंधश्रद्धाएं फैलाने का काम कर रहें है. लोगों से पैसे ऐंठने काम कर रहे है.

कुछ अच्छे साधू भी है, लेकिन उनकी संख्या कम है. आज युवकों के पास इतना समय नहीं है कि शहर में आने वाले हर साधू के पास जाकर उसे जांच-परख ले. इसलिए उनपर जो आरोप लगाया जा रहा है वह गलत है.

3 comments:

  1. काफी हद तक सही बात कही है धर्म के माप दंड बदल रहे है

    लेकिन मुनि भगवंत आप की राय आपको सुधारनी होगी उचित आदर आपको उनके प्रति रखना जरुरी

    किसी को गलत कहेते हुआ हमें आपनी मर्यादा को भुलाना नहीं चाहिए

    जैसे किसी बुजुर्ग के हम पांव छुते है उस वक्त उसके आचरण काही हिसाब नहीं करते वैसेही उदारता साधू पक्षमे आप दिखये तो उचित होगा

    जैन समाज ध्याiन साधना को भूल गया है यद्द्यापी प्रवचन के बाद

    यदि २० मिनिट का ध्यान हो तो जो प्रवचन में कही गयी बाते जो उपरी स्तर पर रह जाती है और( समय के साथ भुला दी जाती है ) वह ध्यान के माध्यमसे

    अंतर्मन में उतारी जा सकती है और साधनको एक नया आयाम दे सकते है एस विषय का गहरा आध्यायन हम लोग कर रहे है जिस से धर्म एक बंधन न लगकर एक स्वाभविक प्रक्रिया लगेगी यह वादा आप को कर रहा हूँ

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  2. -महावीर सांगलीकर ji,spandan ji ka reply padkar aapko pta lag gaya hoga ke bhale he guruo k pass ya mandir na jay (samay ya kisi karanvas) but itna to yuvao ko pta hai ke guru aadi ka naam aadar se lena chahye..

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  3. सही बात है कि यह सब दिखावा नही करते ,पर कोई तो लक्षण होंगे जिनसे पता चले कि वे जैन धर्म मे आस्था रखते है?

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