Saturday, October 15, 2011

सच्चे जैन मुनि की खोज में

-चित्तरंजन चव्हाण  

मेरा एक दोस्त है. वह पिछले कई सालों से किसी जैन मुनि से मिलना चाहता था. किसी सच्चे जैन मुनि से. जब उसने मुझ से पूछा था कि क्या तुम किसी सच्चे जैन मुनि को जानते हो? तब मैंने कहा था कि नहीं, इस काल में सच्चा जैन मुनि मिलना नामुमकीन है. यह मैं नहीं कहता, बल्की जैनियों के शास्त्रों में लिखा है. वैसे जैन लोग शास्त्र में लिखी हुई हर बात को पत्थर की लकीर मानते है, लेकिन इन तथाकथित जैन मुनियों ने न जाने क्या जादू कर दिया है कि जैनियों ने इस शास्त्र वचन को भी ठुकरा दिया है, और वे इन तथाकथित मुनियों के अंधभक्त बनकर उनके पीछे-पीछे घुमते रहते है. खैर, मेरी बात न मानो, खोजते रहो, और कोई सच्चा जैन मुनि मिले तुम्हे, तो मुझे भी बताओं. मैं भी बरसों से उसी खोज में हूँ . 

यह घटना लगभग 15 साल पुरानी है. मेरा वह दोस्त महाराष्ट्र छोड़कर किसी दूसरे प्रदेश चला गया. बाद में उससे कोई संपर्क भी नहीं हो सका. लेकिन पिछले महिने मैं एक जैन कॉन्फरन्स में  भाग लेने हेतु दिल्ली गया था, तब अचानक उससे फिर मुलाखात हो गई. वह दिल्ली के पास ही एक अनाथाश्रम चलाता था, और दूसरी अनेक समाजोपयोगी संस्थाओं से भी जुडा हुआ था. 

मुझे वह सच्चे मुनियों वाली बात याद आ गयी. मैं ने उसे पूछा, 'बताओ दोस्त, क्या तुम्हे कोई सच्चा जैन मुनि मिला?'  वह मुस्कुराकर कहने लगा, 'तुम सच कहते थे यार, इस काल में सच्चा जैन मुनि मिलना नामुमकीन है. फिर भी मैं धुंडता रहा पागलों की तरह. लेकिन कुछ फ़ायदा नहीं हुआ. अब तो मैं उन तथाकथित मुनियों की ओर देखता तक नहीं'. 

'क्यों? ऐसा क्या हो गया?' मैं ने उससे पूछा. 'अरे क्या बताऊँ, पहली बात तो यह है कि ये मुनि दिगंबर होते है या श्वेतांबर, या फिर स्थानकवासी या तेरापंथी. मुझे उनसे क्या लेना देना? मै तो सिर्फ जैन मुनि धुंड रहा था लेकिन एक भी नहीं मिला. सब अपने अपने पंथ चला रहे है, जैन धर्म से किसी को कुछ लेना देना नहीं है'. 

मैं ने मुस्कुराकर कहा, 'अरे ऐसा मत कहो. मुनि निंदा करना बड़ा पाप है, ऐसा जैनी कहते हैं'. 

'देखो दोस्त', वह गंभीर हो कर बोला, 'तुम तो जानते हो कि इन मुनियों ने अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के लिए कई हथकंडे अपनाए हैं. मुनि निंदा को पाप करार देना यह ऐसी ही एक चाल है, ता कि लोग मुनियों के खिलाफ कुछ न बोले. रही मेरी बात, मै तो इनको मुनि ही नहीं मानता, तो इसे कोई मुनि निंदा कैसे कह सकता है? और आज मैं जो कुछ कह रहा हूँ, बरसों पहले से तुम कहते रहे हो.......' 

उस दिन मुझे पहली बार महसूस हुआ कि मै अकेला नहीं हूँ.

4 comments:

  1. आदर्श जैन मुनी को खोजने के लिये ज्ञान व श्रृध्दा जरूरी है.कुछ मुनी गलत भी हो सकते है,लेकिन सभी नही हीरा कभी नही कहता कि मै सच्चा हीरा हू.जौहरी ही पहचानते.जो भी हो मुनी यदि निकृष्ट कर्म करते है तो उन्हे वस्त्र पहना कर ग्रहस्थ बनाने का काम भी समाज़ का है.आज भी सही मुनी पाये जाते है.लेकिन हम अगर सही जौहरी होंगे तभी पहचान पायेंगे.

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  2. jab rasta he galat hai to manjil kabhi teen kaal me aur teen lok me mil he nahi sackti....rasta badlo to sacche guru , dev , shastra sab mil jayenge...

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  3. इंदौर में रहते हुए भाई आपकी ही जैसी एक समय मेरी भी सोच बन गयी थी और मैंने भी यह निर्णय कर लिया था की जिन मंदिरों में मुनि जाते है वहां में न जाउंगा पर पूज्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज का नाम मैंने बहुत सुन रखा था, दर्शन पहले भी किये थे पर सामान्य रूप से .......मन ने कहा की सब लोग पूज्य आचार्य श्री को आज का मुनियों का आदर्श मानते है, क्यों n एक बार इनकी परिक्षा कर ली जाए और पहुँच गया अमरकंटक | पहली बार मैंने किसी साधू की हर क्रिया पर परीक्षा के द्रष्टी से
    अल्पबुद्दी का स्वामी होते हुए भी पैनी नजर रखी और मेरा सोभाग्य रहा की में जैसा गुरु चाहता था उससे बढ़कर ही पाया (आठ दिन रुका, ज्यादा से ज्यादा समय गुरु महारज की क्रियायो पर द्रष्टी बनाए रखा )| पंचम काल के अन्त तक सच्चे साधू होंगे यह बात तो जिनवाणी माता भी कहती है, और पूज्य आचार्य महारक को देखकर यह साबित भी हो गया | आप एक बार पूज्य मुनि नियमसागर जी ससंघ मुनि विनीतसागर जी ससंघ के दर्शन करके तो देखे .....आज भी चतुर्थ काल की चर्या का पालन करने बाले मुनिराज हम इनमे पाते है और भी साधू संत है जो अपनी चर्या सही रूप से पालन करते है ....

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  4. जैन ही क्यों,किसी भी धर्म का सच्चा साधु मिलना आज कठीन हैं.

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