Saturday, July 30, 2011

महावीर और उसके अनुयायी

-महावीर सांगलीकर

किसी महान विचारक के विचारों को उसके अनुयायी ही अच्छी तरह से खत्म कर सकते हैं. ऐसा करना उनके लिये एक जरुरी बात होती है, क्यों कि उसके महान विचार या तो वे पचा नही पाते, या इस प्रकार के विचार उनकी समझ के बाहर होते है. वे इन विचारों को छुपाने के लिये उस महान विचारक की जीवनी लिख देते है और उसमें उसके विचार लिखने के बजाय चमत्कार वाली घटनाए लिखते हैं.

इससे भी आगे जाकर वे उसे भगवान बना देते हैं. उसके मंदिर बनवाते हैं, ता कि भक्त लोग आये, और मूर्ती के सामने माथा टेक कर चले जाये. किसी प्रकार का विचार करने कि जरुरत नही होती. सामने जो मूर्ती है वह भगवान की नही, बल्की किसी महान विचारक की है यह बात वे लोग सोच ही नही सकते. फिर उस के विचारो से क्या लेना देना?

ऐसा कई महान विचारकों के साथ हुआ है. बुद्ध के साथ भी यही हुआ, और महावीर के साथ भी.

आइए देखते है कि महावीर ने दुनिया के सामने कौन से विचार रखें और उसके तथाकथित अनुयायीयों ने महावीर के विचारो के साथ कैसा खिलवाड किया.

महावीर जैन धर्म के संस्थापक नही थे बल्की सुधारक थे. उन्होंने पहले से चली आ रही कई परंपराओ को, रुढीयो को छोड दिया, तोड दिया. मजे की बात देखिये, महावीर के तथाकथित अनुयायी आज भी कई गलत परंपराए बडी श्रद्धा के साथ निभा रहे हैं. उन्हें तोड़ना नही चाहते.

महावीर ने अपना पहला आहार एक दासी के हाथो लिया, वह दासी कैद में थी और वह कई दिनों से नहायी तक नही थी. उसे विद्रूप किया गया था और उसके कपडे भी गंदे-मैले थे. हम देखते हैं की महावीर कभी कभार ही खाना खाते थे, और वह आम आदमी के घर परोसा हुआ होता था. कभी कुम्हार के घर का, कभी लुहार के घर का तो कभी किसान के घर का. लेकीन आजकल के जैन साधू सेठ-साहुकारो के घर का ही खाते हैं. जैन धर्म के एक पंथ के साधुओ ने तो आहार लेने का भी कर्मकांड बनाया हैं.

महावीर के संघ में सभी जातियो के लोगो को मुक्त प्रवेश था. महावीर के संघ के कई साधू शूद्र और चांडाल तक थे. महावीर कहते थे एगो मनुस्स जाई यानि मनुष्य जाति एक हैं. लेकिन आजकाल के जैन साधू खुद जातीवादी बन गये हैं और समाज में जातीवाद फैला रहे हैं. और जैन समाज तो इतना महान है की इनके मंदिरों में अजैनियो को तो छोडियो, दुसरे पंथ के जैनियों को भी जाना मुश्किल होता है. और बाते करते है विश्व धर्म की!

महावीर शोषण, गुलामी, हिंसा, झूठ, चोरी, परिग्रह जैसी बातो के खिलाफ थे. आजकल के जैन साधू और लोग सिर्फ हिंसा के खिलाफ ही बोलते है, बाकी सारी बातों को नजर अंदाज कर देते है. सच तो यह है की जैनियों को अहिंसा की बाते करने का कोई अधिकार नहीं है. अहिंसा तो शूर-वीरों के लिए होती है, कायरों के लिए नहीं. एक जमाने में जैन भी शूर वीर थे, क्यों की तब वे क्षत्रिय थे. अब जादातर बनिए बन गए है. दलाली के, सट्टे-ब्याज के धंदे करते है. ये लोग कहते है की सेना में जाना नहीं चाहिए. अब तो कहने लगे है कि खेती करना भी पाप है, क्यों कि उसमे हिंसा होती है.

किसी अच्छे धर्म का किसी गलत हातो में पड़ने से क्या हाल होता है, इसका जैन धर्म जीता जागता उदहारण है.


2 comments:

  1. sadhu kya sena mai jata tha ya kheti karta tha.khud ke lia banaya khana ki jankari hone se wah kahna le sakta h?prachhit ka bhi vidhan h yadi galti karta h.buraio ke sath achchhaia jo ias yug mai bachi huia h ki jankari dene se man kunthith nhi hoga.sabhi dharm walo mai kewal achchhaia h?

    ReplyDelete
  2. 1.Some sentences are true but this is also true that jain muni dont take money for coming at home where as other religious monk take lots of money panch pakwan etc for visit.


    2.And about gochari
    there are also cases where some people give poison like things in gochari eg.mallimuni m sab ko gocharime shadyantrase poisonous sabji berayi gayi thi.
    4. Lekin bahutse muni kahape bhi gochari lete he
    aap kahate he vaise bhi sadhu dekhe he lekin kam he

    5.mai to aajtak jitne sampradayke sadhuo ko mila
    sabhi me vahi tej tyag aur tapasya ki murat dikhai di

    6.sirf galat ye lagata tha ki bahut se sadhu dusare panth ko(digambar,shwetambar,sthanak,murtipujak) apnese nicha samajate he
    (kuch aise bhi he jo sab ek hona chahate he lekin vaise bhi bahut kam he.)

    2 sal pahale yaha ek bahut bade santka chaturmas hua unaka pravachan sunane log dur durse aate the lekin fir b ve
    aksar pravachan ke dauran dusare panth ke sant ko bulate the aur unaka margdarshan lete the unako pravchan deneki binati karate aur sravakoko b us panth ki acchaiya batate unhone ekjut ke liye bahut prayas kiya aur aaj b kar rahe he lekin ye b observ kia ki unhone jaise dusaro ko bulake apne panthke logome unake prati aadarki bhavana jatai vaise dusare panth valone bhi apne dharmsabhame bulake kabhi pravachan ki binati kyu nai ki?


    ReplyDelete

Popular Posts