tag:blogger.com,1999:blog-61740696132917428062024-02-20T14:53:08.822-08:00जैन विचार | Jain Vichaarइस मंच पर अलग-अलग लेखकों के वैचारिक लेख दिए गए है, जो आपको सोचने पर मजबूर कर देते हैं. इस मंच के लिए आप भी अपने लेख भेज सकते हैंChittaranjan Chavanhttp://www.blogger.com/profile/11783867496013159135noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-6174069613291742806.post-35546033506012517392013-07-11T02:04:00.002-07:002013-07-11T02:07:19.510-07:00मैं कौनसा जैन हूं ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: right;">
-महावीर सांगलीकर</div>
<div style="text-align: right;">
<br /></div>
जब किसी जैनी से मेरी नई पहचान होती है तब वह यह जानना चाहता है की मैं किस सम्प्रदाय का जैन हूँ .<br />
<br />
मैं कहता हूं, "मैं जैन हूं".<br />
<br />
फिर वह पूछता है, "मेरा मतलब है, आप दिगंबर हो या श्वेतांबर?"<br />
<br />
मैं तपाक से बोलता हूं,
"क्या मैं तुम्हें दिगंबर लगता हूं? क्या मैं तुम्हे श्वेतांबर लगता हूं?
मैंने कपडे पहने है, इसका मतलब मैं दिगंबर नहीं हूं, और मेरे कपडे सफ़ेद रंग
के नहीं है यानि मैं श्वेतांबर भी नहीं हूं"<br />
<br />
मेरा ऐसा टेढा जवाब सुनकर उसका मूंह इतनासा हो जाता है.<br />
<br />
पता नहीं, कब सुधरेंगे ये लोग.
</div>
Chittaranjan Chavanhttp://www.blogger.com/profile/11783867496013159135noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6174069613291742806.post-2535266428299851622011-10-15T00:45:00.000-07:002022-07-10T11:28:34.301-07:00सच्चे जैन मुनि की खोज में<div style="text-align: right;">-<span>चित्तरंजन चव्हाण </span></div><div><br /></div><div>मेरा एक दोस्त है. वह पिछले कई सालों से किसी जैन मुनि से मिलना चाहता था. किसी सच्चे जैन मुनि से. जब उसने मुझ से पूछा था कि क्या तुम किसी सच्चे जैन मुनि को जानते हो? तब मैंने कहा था कि नहीं, इस काल में सच्चा जैन मुनि मिलना नामुमकीन है. यह मैं नहीं कहता, बल्की जैनियों के शास्त्रों में लिखा है. वैसे जैन लोग शास्त्र में लिखी हुई हर बात को पत्थर की लकीर मानते है, लेकिन इन तथाकथित जैन मुनियों ने न जाने क्या जादू कर दिया है कि जैनियों ने इस <span>शास्त्र</span> वचन को भी ठुकरा दिया है, और वे इन तथाकथित मुनियों के अंधभक्त बनकर उनके पीछे-पीछे घुमते रहते है. खैर, मेरी बात न मानो, खोजते रहो, और कोई सच्चा जैन मुनि मिले तुम्हे, तो मुझे भी बताओं. मैं भी बरसों से उसी खोज में हूँ . </div><div><br /></div><div>यह घटना लगभग 15 साल पुरानी है. मेरा वह दोस्त महाराष्ट्र छोड़कर किसी दूसरे प्रदेश चला गया. बाद में उससे कोई संपर्क भी नहीं हो सका. लेकिन पिछले महिने मैं एक जैन <span id="6_TRN_4">कॉन्फरन्स </span>में <span> भाग लेने हेतु दिल्ली गया था, तब अचानक उससे फिर मुलाखात हो गई. वह दिल्ली के पास ही एक अनाथाश्रम चलाता था, और दूसरी अनेक समाजोपयोगी संस्थाओं से भी जुडा हुआ था. </span></div><div><span><br /></span></div><div><span>मुझे वह सच्चे मुनियों वाली बात याद आ गयी. मैं ने उसे पूछा, 'बताओ दोस्त, क्या तुम्हे कोई सच्चा जैन मुनि मिला?' वह मुस्कुराकर कहने लगा, 'तुम सच कहते थे यार, </span><span>इस</span> <span>काल</span> <span>में</span> <span>सच्चा</span> <span>जैन</span> <span>मुनि</span> <span>मिलना</span> <span>नामुमकीन</span> <span>है</span>. <span id="6_TRN_4"> </span>फिर भी मैं धुंडता रहा पागलों की तरह. लेकिन कुछ फ़ायदा नहीं हुआ. अब तो मैं उन तथाकथित मुनियों की ओर देखता तक नहीं'. </div><div><br /></div><div>'क्यों? ऐसा क्या हो गया?' मैं ने उससे पूछा. 'अरे क्या बताऊँ, पहली बात तो यह है कि ये मुनि दिगंबर होते है या श्वेतांबर, या फिर स्थानकवासी या तेरापंथी. मुझे उनसे क्या लेना देना? मै तो सिर्फ जैन मुनि धुंड रहा था लेकिन एक भी नहीं मिला. सब अपने अपने पंथ चला रहे है, जैन धर्म से किसी को कुछ लेना देना नहीं है'. </div><div><br /></div><div>मैं ने मुस्कुराकर कहा, 'अरे ऐसा मत कहो. मुनि निंदा करना बड़ा पाप है, ऐसा जैनी कहते हैं'. </div><div><br /></div><div>'देखो दोस्त', वह गंभीर हो कर बोला, 'तुम तो जानते हो कि इन मुनियों ने अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के लिए कई हथकंडे अपनाए हैं. मुनि निंदा को पाप करार देना यह ऐसी ही एक चाल है, ता कि लोग मुनियों के खिलाफ कुछ न बोले. रही मेरी बात, मै तो इनको मुनि ही नहीं मानता, तो इसे कोई मुनि निंदा कैसे कह सकता है? और आज मैं जो कुछ कह रहा हूँ, बरसों पहले से तुम कहते रहे हो.......' </div><div><br /></div><div>उस दिन मुझे पहली बार महसूस हुआ कि मै अकेला नहीं हूँ.</div>Chittaranjan Chavanhttp://www.blogger.com/profile/11783867496013159135noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6174069613291742806.post-74904754931037269692011-10-15T00:43:00.000-07:002022-07-10T11:11:27.196-07:00मैंने मंदिर जाना छोड दिया<div style="text-align: right;">-<span></span><span style="text-align: left;">चित्तरंजन चव्हाण </span></div><div style="text-align: right;"><span style="text-align: left;"><i><br /></i></span></div><i><span>
</span>(इस लेख में दी गयी हर एक घटना सच्ची हैं. यह मेरा अपना अनुभव है. ऐसी घटनाएं आपके इर्द-गिर्द भी होती रहती हैं यह मैं जानता हूं.) </i><div><br /></div><div>पहले मैं भी दूसरों की तरह मंदिर जाता था. लेकिन रोज नही, बल्की जब मन करे और समय मिले तभी. मंदिर जाने से धर्म का पालन होता है ऐसा मैने कभी नहीं माना. फिर भी खास मौकों पर मैं मंदीर जाया करता था, जैसे महावीर जयंती, दशलक्षण-पर्युषन पर्व या किसी जैन मुनी के आने पर.
लेकिन अब मैंने मंदिर जाना पूरी तरह से बंद कर दिया है. </div><div><br /></div><div> इसके कई कारण है. जैसे जब मै मंदिर में कभी कभार जाता था तो वहां के लोग मुझे शक की नजर से निहारते, जैसे कोई चोर आया हो. कुछ लोग मेरी पॅंट के उपर का पट्टा देखकर उसे उतारने का हुक्म देते. मैं पूछता, क्यों? कहते, चमडी का पट्टा यहां नहीं चलता. मैं कहता, लेकिन यह चमडी का नहीं, रबर का है. तो कहते, फिर भी उतारो. मैं सोचता था, यह लोग श्रावक नहीं, बल्की वॉचडॉग हैं. </div><div><br /></div><div>तभी कोई पहचानवाला आ जाता था और कहता था, अरे चित्तरंजन जी, आप कब आये? आपका लेख पढा, आपने समाज का बहोत बडा काम किया है. फिर वह मेरी पहचान उन वॉचडॉगों से करा देता था. फिर उन वॉचडॉगों का मेरी तरफ देखने का नजरीया बदलता था. वे दुसरे किसी बकरे की तलाश में दरवाजे की ओर जाते थे. </div><div><br /></div><div>और एक बार मंदिर गया तो वहां ट्रस्टियों के दो गुटों मे जोर का झगडा चल रहा था. हातापाई भी हो गयी. बाद में पुलिस आये और सबको पुलीस ठाणे ले गये. </div><div><br /></div><div>इस मंदिर में दूसरे मंदिरों की तरह हमेशा ऐसे झगडे होते रहते है. ट्रस्टियों का ट्रस्टियों से, मुनियों का ट्रस्टियों से और मुनियों का मुनियों से. वजह होती है पैसा. </div><div><br /></div><div> एक बार मुझे मंदिर के अध्यक्ष का फोन आया. वह मेरे बचपन का दोस्त, रिश्तेदार और क्लासमेट भी है. कहने लगा, तुम मंदिर नहीं आते. आया करो. अपने लोगों की संख्या ज्यादा दिखनी चाहिये, नहीं तो मंदिर हमारे हाथ से चला जायेगा xxवालों के हाथ में. आप जानही गये होंगे की यहां भी अमुकवाल, तमुकवाल, ये, वो ऐसे कई जातीय गुट है. इन सबका उद्देश किसी भी तरह मंदिर को पूरी तरह से अपनी जाती के कब्जे में लाना यह है. </div><div><br /></div><div>मंदिर में कई बार चोरी होती है. एक बार पुजारी ने ही चोरी की. पकडा गया. उसे निकाल दिया गया, लेकिन फिर से रखा गया. आजकल पुजारी मिलते जो नहीं. और उसे फिर से रखना जरुरी भी था ट्रस्टियों के लिये, क्यों की वह ट्रस्टियों के, मुनियों के कई राज जानता था. जैसे कि एक ट्रस्टी के लडकी का एक जवान मुनी के साथ अफेअर था और वह दोनो भाग जानेवाले थे. पुजारी के कारण मामला सामने आ गया और उस मुनी को अकेले ही भाग जाना पडा. किसी दूसरे मंदिर की ओर, नये मौके की तलाश में. </div><div><br /></div><div>बाद में पता चला की वह जवांमर्द मुनी सफल भी हुआ किसी करोडपती सेठ की सुंदर लडकी को भगाकर ले जाने में. दोनों ने शादी भी कर ली और आजकल दूर किसी देहात में छोटा सा किराना दुकान चलाते हैं. </div><div><br /></div><div>खैर, इनसे भी भयानक घटनाएं मंदिरों में होती हुई मैंने देखी और सुनी है. जैसे किसी साध्वी का गर्भ ठहरना, या यहां तक की किसी मुनी ने एक श्राविका की हत्या के लिये किसी गुंडे को दी हुई सुपारी. </div><div><br /></div><div>लेकिन एक घटना ने मुझे मजबूर कर दिया की अब बस हो गया. जिंदगी चली जायेगी लेकिन मंदिर जाने से कुछ फायदा नही होगा. वहां जाकर मैं भी उनके जैसा बन जाऊंगा.
मेरे घर के ही सामने, रस्ते की दूसरी ओर एक जैन मंदिर है. वह किस जैन संप्रदाय से संबंधित है यह बात मैं नहीं बताऊंगा. मुझे किसी संप्रदाय से कोई लेना देना नहीं है. मैंने पाया है की सभी यों के अनुयायी अनेक बातों में एक जैसे ही हैं. खैर, उस मंदिर में दूसरे दिन से प्रतिष्ठा का कार्यक्रम होने वाला था. इस कार्यक्रम में शामील होने के लिये मुझे भी खास रूप से बुलाया गया था. </div><div><br /></div><div>लेकिन कार्यक्रम से पहले मुंबई शहर पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया. उस भयानक हादसे में कई लोग मारे जा रहे थे. उस रात भी और दुसरे-तिसरे दिन भी. कई पुलिसों ने और सैनिकों ने अपनी जान दे कर लोगो की जान बचाई. मुंबई से 180 कि.मी. दूर हमारे शहर में भी लोग आतंकवाद की छांव में थे. लोगों के चेहरो पर डर, गुस्सा, असहायता जैसी कई भावनाएं झलक रही थी. </div><div><br /></div><div>लेकिन उसी समय सामने वाले जैन मंदिर में प्रतिष्ठा की तैय्यारी जोर-शोर से चल रही थी. हम कुछ लोगों ने उस मंदिर में विराजमान साधू से इस बारे में बात भी की. लेकिन उसने कहा, यह कार्यक्रम रद्द नही हो सकता, ना ही इसे पोस्टपोन किया जा सकता हैं. लाखों रुपये खर्च हो चुके हैं. कार्यक्रम रद्द करने से हमारा बडा घाटा हो जायेगा. और फिर उस हमले का कार्यक्रम रद्द करने से क्या संबंध हैं? इस शहर पर हमला होता तो अलग बात थी. वहां उपस्थित सेठो-साहुकारो ने भी यही कहा. </div><div><br /></div><div>हम निराश होकर वापीस आ गये. </div><div><br /></div><div>मैं एक एनजीओ का काम देखता हूं. हमारे शहर के जो लोग उस काल में मुंबई गये थे, और जिनके रिश्तेदार मुंबई में थे उनका पता लगाने का काम हमारी संस्था ने शुरू कर दिया था. पता चला की यहां के 7 लोग सीएसटी स्टेशन पर आतंकवादियो के हमले में मारे गये थे. 25 लोग गंभीर रूप से घायल हो गये थे. कई लोगो का पता नही चला.
उधर लोग मर रहे थे और इधर यह मंदिर वाले जोर शोर से फिल्मी धुनो पर धार्मिक गीत गा रहे थे. उन्होने एक जुलुस भी निकाली. इस जुलुस में जैन युवक, युवतीयां और महिलाएं नाच रही थी. मैं यह बडे दुख के साथ देख रहा था. तभी एक दोस्त ने मुझे देखा और जबरदस्ती से मुझे खिंचकर जुलुस की ओर ले जाने लगा. मैने उसे जोर से धकेल दिया और चिल्लाया, तुम लोग जैन धर्म के दुश्मन हो. लेकिन बॅंडबाजे की आवाज के सामने मेरी आवाज किसी के कानों तक नही पहुंची. वे लोग अपनी ही मस्ती में चूर थे. </div><div><br /></div><div>उस दिन से आज तक मैं किसी मंदिर में गया नही. आगे भी कभी नही जाउंगा. मैं नही चाहता की मैं भी उनके जैसा बनू. वैसे भी मंदिर जाना जैन धर्म में जरुरी बात नहीं है. अगर यह जरूरी बात होती, तो जैन धर्म में मंदिर और मूर्तिपूजा को <span>न </span><span>मानने</span> वाले पंथ, जिनके अनुयायीयों की संख्या 50 फीसदी से जादा है, नहीं होते.</div>Chittaranjan Chavanhttp://www.blogger.com/profile/11783867496013159135noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6174069613291742806.post-30961078842153383152011-08-13T03:47:00.000-07:002012-11-22T02:34:38.883-08:00क्या जैन युवक धर्म से दूर जा रहे हैं?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: right;">
-महावीर सांगलीकर
</div>
<br />
<div id="fb-root">
</div>
<script src="http://connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1"></script><fb:like action="like" font="arial" href="http://jainvichaar.blogspot.com/2011/08/blog-post.html" send="true" show_faces="true" width="400"></fb:like>
<br />
<br />
कई बुजुर्ग लोग जैन युवकों पर हमेशा आरोप लगाते रहते है कि जैन युवक धर्म से दूर जा रहे है. उपरी तौर पर देखे तो यह बात सच लग सकती है, लेकिन वास्तव में यह सच नहीं है.
<br />
<br />
आज के अधिकांश जैन युवक नियमित रूप से मंदिर नहीं जाते, पूजा-अर्चा, कर्मकांड जैसी बातों से दूर रहते हैं, साधुओं के पीछे पीछे नहीं घुमते, उनकी जयजयकार नहीं करते इसका मतलब यह नहीं है की वे जैन धर्म से दूर जा रहे है. वास्तव में हमारे साधू ही जैन धर्म से दूर गए है. जैन धर्म का सही मतलब युवकों तक पहुंचाने में हमारे साधू नाकामयाब रहे है.
<br />
<br />
हमें याद रखना चाहिए कि आज के युवक पढ़े लिखे है, वे खुद विचार और चिंतन करते है, फिर अगर कोई उन्हें धर्म के नाम पर गलत बातें बताने लगता है तो वे उन्हें स्वीकार नहीं कर सकते.
<br />
<br />
आज के युवक तथाकथित धार्मिक क्रियाओं से समाजसेवा, समाज के प्रति दायित्व, सामजिक एकता जैसी बातों को जादा महत्त्व देने लगे हैं. इसके उलटे हमारे कई साधुओं के जीवन का उद्देश समाज के तुकडे करना यही है.
<br />
<br />
आज के जैन युवक जैन धर्म के बारें में जानना चाहते है, <span>महावीर</span> के बारें में जानना चाहते है, लेकिन यह साधू इस विषय पर बोलते ही नहीं, अपनी ही तून्ती बजाते रहते है. सबसे खेद जनक बात यह हैं कि जैन साधुओं और सेठ साहूकारों की मिलीभगत हो गयी है. हर जैन मुनि के पीछे एक धनी होता है और हर धनी के पीछे एक मुनि होता है. इसका फ़ायदा दोनों उठाते रहते हैं, लेकिन समाज का किसी भी तरह का कोई भी फ़ायदा नहीं होता.
<br />
<br />
आज के जैन युवक जैन धर्म की सही जानकारी पुस्तकों और इंटरनेट से पा सकते है, इसलिए धर्म ज्ञान के लिए उन्हें किसी साधू के पास जाना जरूरी नहीं होता. वैसे भी वहां जाकर सही ज्ञान तो मिलनेवाला नहीं होता. अनेक जैन साधू तो जैन धर्म के नाम पर अंधश्रद्धाएं फैलाने का काम कर रहें है. लोगों से पैसे ऐंठने काम कर रहे है.
<br />
<br />
कुछ अच्छे साधू भी है, लेकिन उनकी संख्या कम है. आज युवकों के पास इतना समय नहीं है कि शहर में आने वाले हर साधू के पास जाकर उसे जांच-परख ले. इसलिए उनपर जो आरोप लगाया जा रहा है वह गलत है.
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<script src="http://connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1"></script><fb:like action="like" font="arial" href="http://jainvichaar.blogspot.com/2011/08/blog-post.html" send="true" show_faces="true" width="400"></fb:like></div>
Chittaranjan Chavanhttp://www.blogger.com/profile/11783867496013159135noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6174069613291742806.post-59168531714497985102011-07-30T01:37:00.000-07:002011-07-30T04:05:04.766-07:00महावीर और उसके अनुयायी<div id="fb-root"></div><script src="http://connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1"></script><fb:like href="http://jainvichaar.blogspot.com/2011/07/blog-post_30.html" send="true" width="450" show_faces="true" font="trebuchet ms"></fb:like><div style="text-align: right;"><span>-महावीर</span> <span>सांगलीकर<br /><br /></span><div style="text-align: left;"><p>किसी महान विचारक के विचारों <span id="6_TRN_1t"><span id="6_TRN_1w"></span></span> को उसके अनुयायी ही अच्छी तरह से खत्म कर सकते हैं. ऐसा करना उनके लिये एक जरुरी बात होती है, क्यों कि उसके महान विचार या तो वे पचा नही पाते, या इस प्रकार के विचार उनकी समझ के बाहर होते है. वे इन <span>विचारों</span> को छुपाने के लिये उस महान विचारक की जीवनी लिख देते है और उसमें उसके विचार लिखने के बजाय चमत्कार वाली <span id="6_TRN_5f"><span id="6_TRN_5k">घटनाए </span> लिखते <span></span></span> हैं.</p> <p><span>इससे भी आगे जाकर वे उसे भगवान बना देते</span> हैं.<span> उसके मंदिर बनवाते </span> हैं<span>, ता कि भक्त लोग आये, और मूर्ती के सामने माथा टेक कर चले जाये. किसी प्रकार का विचार करने कि जरुरत नही होती. सामने जो मूर्ती है वह भगवान की नही, बल्की किसी महान विचारक की है यह बात वे लोग सोच ही नही सकते. फिर उस के विचारो से क्या लेना देना? </span></p> <p><span>ऐसा कई महान विचारकों के साथ हुआ है. </span> बुद्ध के साथ भी यही हुआ, और महावीर के साथ भी. </p> <p>आइए देखते है कि महावीर ने दुनिया के सामने कौन से विचार रखें और उसके तथाकथित अनुयायीयों ने महावीर के <span id="6_TRN_4l">विचारो</span> के साथ कैसा खिलवाड किया.<br /></p><p>महावीर जैन धर्म के संस्थापक नही थे बल्की सुधारक थे. उन्होंने पहले से चली आ रही कई परंपराओ को, रुढीयो को छोड दिया, तोड दिया. मजे की बात देखिये, महावीर के तथाकथित अनुयायी आज भी कई गलत परंपराए बडी श्रद्धा के साथ निभा रहे हैं. उन्हें तोड़ना नही चाहते.<br /></p><p>महावीर ने अपना पहला आहार एक दासी के हाथो लिया, वह दासी कैद में थी और वह कई दिनों से नहायी तक नही थी. उसे विद्रूप किया गया था और उसके कपडे भी गंदे-मैले थे. हम देखते हैं की महावीर कभी कभार ही खाना खाते थे, और वह आम आदमी के घर परोसा हुआ होता था. कभी कुम्हार के घर का, कभी लुहार के घर का तो कभी किसान के घर का. लेकीन आजकल के जैन साधू सेठ-साहुकारो के घर का ही खाते हैं. जैन धर्म के एक पंथ के साधुओ ने तो आहार लेने का भी कर्मकांड बनाया हैं.<br /></p><p>महावीर के संघ में सभी जातियो के लोगो को मुक्त प्रवेश था. महावीर के संघ के कई साधू शूद्र और चांडाल तक थे. महावीर कहते थे <span style="font-style: italic;">एगो मनुस्स जाई</span> यानि मनुष्य जाति एक हैं. लेकिन आजकाल के जैन साधू खुद जातीवादी बन गये हैं और समाज में जातीवाद फैला रहे हैं. और जैन समाज तो इतना महान है की इनके मंदिरों में अजैनियो को तो छोडियो, दुसरे पंथ के जैनियों को भी जाना मुश्किल होता है. और बाते करते है विश्व धर्म की!<br /></p><p>महावीर शोषण, गुलामी, हिंसा, झूठ, चोरी, परिग्रह जैसी बातो के खिलाफ थे. आजकल के जैन साधू और लोग सिर्फ हिंसा के खिलाफ ही बोलते है, बाकी सारी बातों को नजर अंदाज कर देते है. सच तो यह है की जैनियों को अहिंसा की बाते करने का कोई अधिकार नहीं है. अहिंसा तो शूर-वीरों के लिए होती है, कायरों के लिए नहीं. एक जमाने में जैन भी शूर वीर थे, क्यों की तब <span>वे</span> <span></span>क्षत्रिय थे. अब जादातर बनिए बन गए है. दलाली के, सट्टे-ब्याज के धंदे करते है. ये लोग कहते है की सेना में जाना नहीं चाहिए. अब तो कहने लगे है कि खेती करना भी पाप है, क्यों कि उसमे हिंसा होती है.</p>किसी अच्छे धर्म का किसी गलत हातो में पड़ने से क्या हाल होता है, इसका जैन धर्म जीता जागता उदहारण है.<br /><span></span></div></div><br /><br /><div id="fb-root"></div><script src="http://connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1"></script><fb:like href="http://jainvichaar.blogspot.com/2011/07/blog-post_30.html" send="true" width="450" show_faces="true" font="trebuchet ms"></fb:like>Chittaranjan Chavanhttp://www.blogger.com/profile/11783867496013159135noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-6174069613291742806.post-25188003901311992582011-07-29T13:01:00.000-07:002011-07-31T02:04:16.659-07:00जैन समाज का एक भविष्य ऐसा भी<div id="fb-root"></div><script src="http://connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1"></script><fb:like href="http://jainvichaar.blogspot.com/2011/07/blog-post_7568.html" send="true" width="450" show_faces="true" font="trebuchet ms"></fb:like><div style="text-align: right;">-<span>महावीर</span> <span>सांगलीकर</span><br /><br /></div>जैन समाज में कई प्रकार बदलाव तेजी से आ रहे हैं. सब से बडा बदलाव यह हैं इस समाज में साक्षरता का प्रमाण अब तक के इतिहास में सब से जादा हो गया हैं. इस बारे में मेरा एक निरीक्षण यह हैं की छोटी-मोटी दुकान चलानेवाले दूकानदारों के, मिडल क्लास के और जैन किसानों के बच्चे पढ़- <span>लिखकर</span> डॉक्टर, वकील, इंजीनिअर, प्रोफेसर, सी.ए. आदी बन रहे हैं, कई लडके-लड़किया प्रशासकीय सेवाओं में जा रहे हैं, आय.पी.एस./आय.ए.एस. अफसर बन रहे हैं. पढ़े-लिखे कई बच्चे विदेशों में जाकर बस रहे है.<br /><br /><div>यह एक बहुतही अच्छी बात है हमारी समाज के भविष्य के लिए. सबसे अच्छी बात यह है की समाज की 'बनिया' पहचान ख़त्म होने जा रही है. दूसरी बात यह है की इस बदलाव के कारण पूरा समाज पुराने विचारों से बाहर आ रहा है. अब आगे क्या होगा यह सोचने की बात है. इस बारे में मैंने कुछ अटकले लगाईं हैं. आइये, देखते हैं की आगे चलकर क्या-क्या होने जा रहा है:<br /><br />-जैन समाज की नयी पीढ़िया पंथवाद, कर्मकांड, अंधश्रद्धाएं जैसी बातों से दूर रहना पसंद करेगी. तथाकथित धार्मिक कार्यों से जादा सामाजिक कार्यों में उनकी दिलचस्पी रहेगी.<br /><br />-मूर्तिपूजा न करने वाले स्थानकवासी, तारण पंथी और श्वेतांबर तेरापंथी समाज मूर्तिपूजक दिगंबर/श्वेतांबर <span>जैन</span> समाज से हर क्षेत्र में आगे निकल जाएगा.(इस बारे में मैं अलग से एक लेख जल्द ही दे रहां हूं)<br /><br />-अलग-अलग पन्थो और जातियों के जैन युवकों में एकता की भावना बढ़ेगी.समाज में झगडा लगाने वाले नेता और मुनियों से युवा पीढी दूर रहेगी.<br /><br />-लड़कियां लड़कों से जादा शिक्षित होने के कारण कम पढ़े-लिखे लड़कों को शादी के लिए जैन समाज से लड़कियां मिलना मुश्किल हो जाएगा.<br /><br />-आनेवाले समय में आंतर्जातीय और आंतरधर्मीय शादियो का प्रमाण बढता जायेगा. इन्हें कोई भी रोक नही सकता. हमें इसे आपत्ती न मानकर मौक़ा मान लेना चाहिए और इस बदलते हालत का उपयोग अजैन समाज में जैन धर्म के प्रचार के लिए करना चाहिए.<br /><br />- जैन युवतियां जीवन के हर क्षेत्र में युवंकों से आगे निकल जायेगी या कम से कम बराबरी की हिस्सेदार होगी.<br /><br />-खेलकूद, साहस, राजनीती, संगीत, कला, साहित्य, पत्रकारिता, विज्ञान,सामजिक कार्य आदि क्षेत्रों में जैन समाज का दबदबा बढेगा.<br /><br />खेद की बात यह है की हमारी समाज के नेता आज भी पुराने जमाने में जी रहे हैं और उनको आनेवाले कल की ज़रा सी भी भनक तक नहीं.<br /></div><br /><div id="fb-root"></div><script src="http://connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1"></script><fb:like href="http://jainvichaar.blogspot.com/2011/07/blog-post_7568.html" send="true" width="450" show_faces="true" font="trebuchet ms"></fb:like>Chittaranjan Chavanhttp://www.blogger.com/profile/11783867496013159135noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6174069613291742806.post-43295358097525305372011-07-29T01:24:00.000-07:002011-07-30T04:03:40.822-07:00क्या जैन समाज सचमुच अमीर है?<div id="fb-root"></div><script src="http://connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1"></script><fb:like href="http://jainvichaar.blogspot.com/2011/07/blog-post_29.html" send="true" width="450" show_faces="true" font="trebuchet ms"></fb:like><div style="text-align: right;">-महावीर सांगलीकर<br /></div><br />जैन समाज यह एक अमीर समाज है ऐस माना जाता है. कुछ जैन लोग तो दावा करते है की भारत का ७५% इनकम टॅक्स जैन समाज से आता है. लेकिन वास्तव में दूसरे समाजों से वह कोसों पीछे है. जरा आप भारत के सबसे अमीर १०० या ५०० व्यक्तियों की लिस्ट देखे, आपको पता चलेगा की अभी तक भारत का सबसे अमीर व्यक्ती एकबार भी जैन समाज से नही हुआ. पहले दस अमीर व्यक्तियों में कभी कभार केवल एक जैन व्यक्ती होता है, वह भी ७वे स्थान के आगे. पहले १०० अमीर व्यक्तियों मे ८-१० जैन लोग होते हैं. इसके उलटे पहले दस लोगों में आपको हमेशा २ पारसी और तीन अजैन आगरवाल दिखाई देंगे.<br /><br />दुसरी बात यह है कि, किसी भी समाज की अमीरी उस समाज में पैसेवाले लोग कितने है इस बात पर नापी नहीं जाती, बल्की उस समाज में बुद्धिजीवी, विचारक, सायंटिस्ट, प्रोफेसर, लेखक, समाजसुधारक, पत्रकार, खिलाड़ी, कलाकार, गायक, पत्रकार, राजकीय नेता जैसे लोगों की संख्या क्या है इस बात पर नापी जाती है. इस नजर से हम जब जैन समाज की और देखते है तो जैनियों से जादा गरीब इस दुनिया में कोई नहीं है यह बात साफ दिखाई देती है.<br /><br />सोचने की बात यह है की पारसी और अजैन आगरवाल लोग, जो संख्या में जैनियों से काफी कम है, जीवन के हर क्शेत्र में आगे हैं. पारसीयो की संख्या तो जैनियो के १ फीसदी भी नही, फिर भी उनकी अमीरी के आगे जैनियों का कोई अस्तित्व ही नही है. जैन समाज बडा दानशूर है ऐस डंका हमेशा पीटा जाता है, लेकिन पारसी लोग जो दान देते है, उसके आगे जैनियों का दान कुछ मायने नहीं रखता. पारसीयों का दान अस्पताल, स्कूल, कॉलेजेस, शोध संस्थाएं, स्कॉलरशिप्स जैसी बातों के लिये होता है, जब की जैनियों का दान मंदिर, प्रतिष्ठाएं, उत्सव, चातुर्मास जैसी बातों में जाता है. कुछ अपवाद है, लेकिन इसकी तुलना पारसीयों से नहीं की जा सकती.<br /><br />यह बडे शर्म की बात है की जैन समाज की पहचान दुकानदारी, मनी लेंडिंग/साहुकारी, सट्टा बाज़ार, शेअर दलाली, हवाला मार्केट, आर्थिक घोटाले जैसी बातों से होती है. अगर जैन समाज को सचमुच अमीर बनाना है, तो सबसे पहले उन्हे ऐसे अनुत्पादक धंदो से दूर रहना होगा. वैसे भी एजंट लोग कभी भी सबसे अमीर नही बनते, ना ही उन्हे पुरे समाज में बुद्धीजीवियो जितना सम्मान मिलता है. ( जैन समाज के लोग, खासकर मुनी लोग उन्हे सम्मान देंगे, क्यो की इस समाज में महानता पैसे पर नापी जाती है. )<br /><br />खुशी की बात है की पिछले कुछ सालों से जैन समाज में इस दिशा में धीरे धीर बदलाव आ रहा है. समाज में डॉक्टर, सी.ए, वकील, इंजिनीअर, प्रशासनिक अधिकारी जैसे लोगों की संख्या बढ़ रही है. अब जैन समाज को इस दिशा में कदम उठाने चाहिये की समाज से सायंटिस्ट, विचारक, लेखक, पत्रकार, खिलाड़ी, कलाकार, गायक आदि भी बड़ी संख्या में निपजे. तभी जैन समाज खुद को अमीर कहलवाने का हकदार बनेगा.<br /><br /><div id="fb-root"></div><script src="http://connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1"></script><fb:like href="http://jainvichaar.blogspot.com/2011/07/blog-post_29.html" send="true" width="450" show_faces="true" font="trebuchet ms"></fb:like>Chittaranjan Chavanhttp://www.blogger.com/profile/11783867496013159135noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6174069613291742806.post-77307733581041016232011-07-29T00:47:00.000-07:002011-07-30T04:02:19.060-07:00अहिंसा क्या है?<div id="fb-root"></div><script src="http://connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1"></script><fb:like href="http://jainvichaar.blogspot.com/2011/07/blog-post.html" send="true" width="450" show_faces="true" font="trebuchet ms"></fb:like><div style="text-align: right;">-<span>गणि</span> <span>राजेंद्र</span> <span>विजय</span><br /></div><br />हम में से बहुत से लोग अक्सर अहिंसा की बात करते हैं<span class="messageBody" ft="{"type":3}">।</span> कहते हैं कि हमें अपने जीवन में अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए। पर अहिंसक होना आसान नहीं है। अहिंसा का अर्थ सिर्फ इतना नहीं है कि हम दूसरे प्राणियों पर दया करें। उन्हें न मारें और न ही कोई और कष्ट पहुंचाएं।<br /><br />अहिंसा में मानवीय संवेदनाएं , जीवन - मूल्य , आदर्श और सात्विक वृत्तियां आदि बहुत कुछ शामिल हैं। सदाचार और विचारों की शुद्धता आदि सभी नैतिक सूत्रों का आधार है अहिंसा। यह धर्म का सच्चा स्वरूप भी है। सर्वधर्म समभाव की आधारशिला है , समता , सामाजिक न्याय और मानव प्रेम की प्रेरक शक्ति भी है। सच्ची अहिंसा वह है जहां इंसान के बीच भेदभाव न हो , सारे अंतर हट जाएं।<br /><br />महात्मा गांधी ने कहा है , ' अहिंसा और सत्य का मार्ग जितना सीधा है , उतना ही तंग भी। यह तलवार की धार पर चलने के समान है। बाजीगरी दिखाने वाला नट एक तनी हुई डोर पर सावधानी से नजर रखकर चल सकता है लेकिन सत्य और अहिंसा की डोर तो उससे भी पतली है। जरा सा चूके नहीं कि नीचे गिरे। '<br /><br />असल में अहिंसक जीवन जीना बहुत बड़ी साधना है। यह सच है कि ज्यादातर लोग अहिंसक होने का ढोंग करते हैं। वास्तविकता में वे अहिंसक जीवन जी नहीं पाते हैं। अहिंसा का दावा करने वाले कुछ लोग कीडे़ - मकोड़ों को तो बचाने का प्रयत्न करते हैं किंतु भूखे , नंगे और गरीब लोगों को देखकर उनके मन में तनिक करुणा नहीं जगती।<br /><br />बहुत बडे़ - बड़े अहिंसावादी लोग भी अपने नौकरों के साथ जैसा व्यवहार करते हैं , उसे देखकर बहुत कष्ट होता है। ऐसे लोग हरी सब्जी खाने में तो हिंसा मानते हैं लेकिन अपने ऊपर आश्रित लोगों को पीडि़त और प्रताडि़त करने से नहीं चूकते। या फिर उनका शोषण करने को चतुराई मानते हैं। यह हमारी अहिंसा की विडंबना है।<br /><br />मंदिर जाना और भजन - कीर्तन करना , यह सब तो व्यक्तिगत साधना के तौर तरीके हैं। यदि कोई समझता हो कि इन तरीकों से अहिंसा की साधना पूरी हो जाएगी तो यह उसका भ्रम है। दूसरों के साथ हमारा व्यवहार कैसा है , यह देखकर ही हमारे अहिंसक जीवन की सत्यता और सार्थकता स्पष्ट हो सकती है।<br /><br />तीर्थंकर महावीर के अनुसार दृष्टि निपुणता तथा सभी प्राणियों के प्रति संयम ही अहिंसा है। दृष्टि निपुणता का अर्थ है - सतत जागरूकता और संयम का अर्थ है - मन , वाणी और शरीर की क्रियाओं का नियमन। जीवन के स्तर पर जागरूकता का अर्थ तभी साकार होता है जब उसकी परिणति संयम में हो। संयम का लक्ष्य तभी सिद्ध हो सकता है जब उसका जागरूकता द्वारा सतत दिशा - निर्देश होता रहे।<br /><br />भगवान महावीर ने दूसरों के दुख दूर करने को अहिंसा धर्म कहा है। खुद महावीर का जीवन आत्म साधना और उसके बाद सामाजिक मूल्यों को प्रतिष्ठा दिलाने में व्यतीत हुआ। वास्तव में भगवान महावीर का प्रयास उस वैज्ञानिक की तरह था जो समाज को जड़ बनाने वाली कुरीतियों और व्यर्थ की मान्यताओं को परे धकेल कर लोगों का जीवन बदलने वाली बातें अपनी प्रयोगशाला में खोजता है।<br /><br />उन्हें महसूस हुआ कि आर्थिक असमानता और वस्तुओं का अनावश्यक व अनुचित संग्रह सामाजिक जीवन में असंतुलन पैदा करता है। ऐसी ही लोभ वृत्तियों के कारण एक इंसान दूसरे का शोषण करता है। लोभ बढ़ते जाने के कारण समाज में अनेक लोग कष्ट का अनुभव करते हैं। इसीलिए महावीर ने अपरिग्रह पर जोर दिया ताकि समाज से आर्थिक असमानता मिट सके।<br /><br />खुद संपन्नता में रहना लेकिन धन के लिए दूसरों का शोषण करना भी एक तरह की हिंसा है। लेकिन हिंसा सिर्फ अर्थ के स्तर पर ही नहीं होती , भावना व विचार के स्तर पर भी होती है। अपने विचार दूसरों पर लादकर उन्हें उसके अनुरूप चलने के लिए बाध्य करना भी हिंसा है। धर्म के नाम पर होने वाली ऐसी हिंसा के कारण सांप्रदायिक उन्माद फैलता है।<br /><br /><div style="font-style: italic;"><div>प्रेषक:<span>मनीष</span> जैन </div></div><br /><div id="fb-root"></div><script src="http://connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1"></script><fb:like href="http://jainvichaar.blogspot.com/2011/07/blog-post.html" send="true" width="450" show_faces="true" font="trebuchet ms"></fb:like>Chittaranjan Chavanhttp://www.blogger.com/profile/11783867496013159135noreply@blogger.com0